प्रभु श्रीराम भक्त हनुमानजी अजर-अमर माना जाता माना जाता है। पुराणों के अनुसार श्रीराम के भक्त हनुमान को अमर माना जाता है। पुराणों के ता माता ने बजरंग बली को कलयुग में अधर्म के नाश और धर्म के प्रसार के लिए अमरत्व का वरदान दिया था। इसी कारण धरती पर कुछ प्रमुख स्थानों को हनुमान का निवास स्थान माना जाता है। इन्हीं विशेष जगहों में से गंधमादन पर्वत एक है।
1. गंधमादन एक छोटा-सा पर्वत है, जो हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर दिशा में स्थित है। वर्तमान में ये तिब्बत के क्षेत्र में आता है। यहाँ जाने के तीन रास्ते हैं। पहला मार्ग नेपाल होते हुए मानसरोवर के आगे, दूसरा विकल्प भूटान के पहाड़ी इलाके से और तीसरा रास्ता अरुणाचल से चीन होते हुए है।
2. गंधमादन पर्वत बजरंगबली का निवास स्थान है, इस बात की पुष्टि कई पुराणों एवं हिन्दू धर्म ग्रंथों में हुई है। श्रीमद् भागवत गीता में इस पर्वत के बारे में प्रमुखता से उल्लेख किया गया है। एक अन्य ग्रंथ महाभारत में भी इस पर्वत का विवरण है। इसमें पांडव और हनुमान की भेंट के बारे में बताया गया है।
3. हनुमानजी ने पूरी धरती में गंध- मादन को ही अपना निवास स्थान क्यों बनाया, इस बात का उत्तर श्रीमद् भागवत् पुराण में मिलता है। इस धर्म ग्रंथ के अनुसार जब प्रभु श्रीराम धरती से बैकुंठ को प्रस्थान कर रहे थे, तभी उन्होंने हनुमान को धरती पर रहने का आदेश दिया। प्रभु की इच्छानुसार बजरंग बली ने ईश्वरीय शक्ति से युक्त गंधमादन को अपना निवास स्थल चुना।
4.इस पर्वत पर एक मंदिर है। जिसमें बजरंगबली के साथ श्रीराम की भी मूर्ति है। पुराणों के अनुसार इसी स्थान पर प्रभु श्रीराम ने वानर सेना के साथ मिलकर रावण के साथ युद्ध के लिए योजना बनाई थी। कई लोगों का मानना है कि आज भी इस जगह श्रीराम के पचिन्ह मौजूद हैं।
5. अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव हिमवंत पार करके गंधमादन पर्वत के पास पहुँचे थे। तभी भीम सहस्र दल कमल लेने केलिए इस पर्वत के वन में आए थे। वहाँ उन्होंने हनुमान को लेटा देखा। भीम ने बजरंगबली को इस स्थान से हटने को कहा, किन्तु हनुमान नहीं हटे। उन्होंने भीम से उनका पैर हटाकर जाने को कहा। शक्तिशाली होने के बावजूद भीम हनुमान को नहीं हटा सके। इस प्रकार उनका घमण्ड भी चूर-चूर हो गया।
6. गंधमादन पर्वत अपने आप में । बहुत खास है। पहले ये कुबेर के राज्य क्षेत्र में था। यहाँ हनुमान से पहले भी की महानुभाव रह चुके हैं।
7. यहाँ महर्षि कश्यप ने तप किया था। इसके अतिरिक्त कई अन्य ऋषिमुनियों, अप्सराओं व किन्नरों ने भी इस इसके पर्वत को अपना निवास स्थान बनाया था। दिया।
8. गंधमादन पर्वत के नामकरण की कथा भी रोचक है। ग्रंथों के वर्णन केअनुसार इस पर्वत पर कई जड़ी-बूटियों के वृक्ष हैं। पूरिवन इनसे सुगंधित होता है। इसी कारण पर्वत का नाम गंधमादन पड़ा।
9, समेरु पर्वत की चारों दिशाओं में इन्हें गजदंत पर्वत के नाम से भी जाना जाता था।
10. कैलाश के उत्तर दिशा के अलावा रामेश्वर में भी एक गंधमादन पर्वत है। इस स्थान से हनुमान जी ने समुद्र पार कर लंका पहुँचने के लिए छलाँग लगाई थी।